चाँद ख़ूबसूरत है ........
चाँद खूबसूरत है ,
मगर सितारों से नहीं।
ग़र वो न हों आसमां में ,
तो चाँद किसपे इतराएगा।
नज़रें जानिब हैं,
मगर अश्कों से नहीं।
ये न हों तो अपनी हसरत,
नज़र कैसे बयाँ कर पायेगा।
आशिकी का मज़ा,
हुश्न-ए-फ़ितरत में है।
आशिक़ी हो ना अगर,
हुश्न पछताएगा।
जाम हूँ मैं मुह्होब्बत का
रश्क ले कर पियो।
सारे ग़म ये तेरा
फ़ना कर जाएगा।
चाँद खूबसूरत है
मग़र .......
बिन पिए जिनकी फ़ितरत
ख़ुमारी में है,
उनके रूह में बसा
है इबादत का नशा।
ग़र जो पी के भी जिनके
भूलें हसरत नहीं,
उनपे कैसे चढ़े
ज़िन्दगी का नशा।
चाँद खूबसूरत है,
मग़र .......
मैं फ़क़त इक फ़क़ीर,
अम्ने-उल्फ़त का हूँ।
मुझसे ये मत कहो;
"जंग अच्छी यहाँ ".
कितने उजड़े बसेरे
मेरे और तेरे।
अब तो पी लो ज़रा ,
अम्ने-सोहबत यहाँ।
मैं कहूँ जिस्म क्या
रूह खिल जाएगी,
रश्क-ए-हज़रत तेरी भी
संवर जाएगी।
जी ज़रूरत जहाँ ;
ख़त्म इज्ज़त जहाँ।
चाँद खूबसूरत है ,
मगर .......
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