यह उस वीर सपूत को सलाम है मेरा जिसने अपनी वीरता से कारगिल के युद्ध में भारत माँ के तीन आँचल बचाए। केप्टन विक्रम बत्रा ; आप हमेशा यादों में रहो न रहो , पर हमसे ज़्यादा वो आज़ाद वादियाँ जिन्हें आपने दहशतगर्दों से आज़ाद करवाया था , उनमे आपके पाक पवित्र लहू की खुश्बू हमेशा रहेंगी :----
तेरी आँचल की ताग मैं,
सरका तो क्या
तेरा दामन सलामत रहे।
तेरे पैरों की धुल मैं,
उड़ा तो क्या
तेरा ताज सलामत रहे।
तेरी पूजा का फूल मैं,
टूटा तो क्या
गुलशन तेरा सलामत रहे।
तूने ही दिया ;
तेरा ही था ;
तुझको दे दिया,
बस तू ! सलामत रहे।
छु न पाए कोई काफिर
तेरे दामन को ,
जब तलक मेरे जिस्म में
माँ ! तेरा लहू और
दिल में आखरी साँस सलामत रहे ............।
तेरी आँचल की ताग मैं,
सरका तो क्या
तेरा दामन सलामत रहे।
तेरे पैरों की धुल मैं,
उड़ा तो क्या
तेरा ताज सलामत रहे।
तेरी पूजा का फूल मैं,
टूटा तो क्या
गुलशन तेरा सलामत रहे।
तूने ही दिया ;
तेरा ही था ;
तुझको दे दिया,
बस तू ! सलामत रहे।
छु न पाए कोई काफिर
तेरे दामन को ,
जब तलक मेरे जिस्म में
माँ ! तेरा लहू और
दिल में आखरी साँस सलामत रहे ............।
No comments:
Post a Comment